Amjad Khan Biography in Hindi - अमजद ख़ान का जीवन

Amjad Khan Biography in Hindi
 

Amjad Khan Biography in Hindi

अमजद ख़ान (जन्म: 21 अक्टुबर, 1943 निधन: 27 जुलाई, 1992) हिन्दी फ़िल्मों के एक अभिनेता थे।
अमजद खान का जन्म 1943 में (विभाजन से पूर्व) लाहौर में हुआ था | वह भारतीय फिल्मो में जाने-माने अभिनेता जयंत के पुत्र थे | अभिनेता के रूप में उनकी पहली फिल्म “शोले” थी और यह फिल्म अमजद (Amjad Khan) को शत्रुघ्न सिन्हा के कारण मिली थी , वास्तव में शोले के गब्बर सिंह की भूमिका पहले शत्रु को ही दी गयी थी परन्तु समयाभाव के कारण इनकार कर दिया तो यह भूमिका अमजद खान को मिल गयी |
अभिनय की दुनिया में आने से पूर्व अमजद , के.आसिफ के साथ सहायक निर्देशक के रूप में काम कर रहे थे | सहायक के रूप में काम करने के साथ ही उन्होंने पहली बार कैमरे का सामना किया और के.आसिफ की फिल्म “लव एंड गॉड” के बाद अमजद खान (Amjad Khan) ने चेतन आनन्द की फिल्म “हिंदुस्तान की कसम” में एक पाकिस्तानी पायलट की भूमिका की | ये दोनों ही भूमिकाये ऐसी थी जो न दर्शको को याद रही और न स्वयं अमजद खान को | अंतत “शोले” को ही अमजद की पहली फिल्म मानते है |

शोले के अलावा अमजद खान (Amjad Khan) ने “कुर्बानी” “लव स्टोरी” “चरस” “हम किसी से कम नही ” “इनकार” “परवरिश” “शतरंज के खिलाड़ी” “देस-परदेस” “दादा"“ गंगा की सौगंध ” “कसमे-वादे” “मुक्कदर का सिकन्दर” “लावारिस” “हमारे तुम्हारे ” “मिस्टर नटवरलाल” “सुहाग ” “कालिया” “लेडीस टेलर” “नसीब” “रॉकी” “यातना” “सम्राट” “बगावत” “सत्ते पे सत्ता” “जोश” “हिम्मतवाला” आदि सैकंडो फिल्मो में यादगार भूमिकाये की | अमजद खान शराब और अन्य बुरी आद्तो से दूर थे |

जन्म - 21 अक्टूबर 1943 बम्बई, ब्रिटिश भारत

मृत्यु - 27 जुलाई 1992 (उम्र 48) मुम्बई, महाराष्ट्र, भारत

राष्ट्रीयता - भारतीय

व्यवसाय - फिल्म अभिनेता, निर्देशक

कार्यकाल - 1965 - 1992

प्रसिद्धि कारण - गब्बर सिंह

निर्देशन भी किया

अमजद खान ने अपने लंबे करियर में ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं। अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र जैसे सितारों के सामने दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में देखना पसंद करते थे और वे स्टार विलेन थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ फिल्मों में चरित्र और हास्य भूमिकाएँ अभिनीत की, जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, दादा, कुरबानी, लव स्टोरी, याराना प्रमुख हैं। निर्देशक के रूप में भी उन्होंने हाथ आजमाए। चोर पुलिस (1983) और अमीर आदमी गरीब आदमी (1985) नामक दो फिल्में उन्होंने बनाईं, लेकिन इनकी असफलता के बाद उन्होंने फिर कभी फिल्म निर्देशित नहीं की।

पिता को माना गुरु

अमजद अपनी सफलता और अभिनेता के करियर को इतनी ऊँचाई देने का श्रेय पिता जयंत को देते हैं। पिता को गुरु का दर्जा देते हुए उन्होंने कहा था कि रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट अपने छात्रों को जितना सिखाती है, उससे ज्यादा उन्होंने अपने पिता से सीखा है। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में यदि उन्होंने प्रवेश लिया होता, तो भी इतनी शिक्षा नहीं मिल पाती। उनके पिता उन्हें आखिरी समय तक अभिनय के मंत्र बताते रहे।

दरियादिल अमजद

पर्दे पर खलनायकी के तेवर दिखाने वाले अमजद निजी जीवन में बेहद दरियादिल और शांति प्रिय इंसान थे। अमिताभ बच्चन ने एक साक्षात्कार में बताया था कि अमजद बहुत दयालु इंसान थे। हमेशा दूसरों की मदद को तैयार रहते थे। यदि फिल्म निर्माता के पास पैसे की कमी देखते, तो उसकी मदद कर देते या फिर अपना पारिश्रमिक नहीं लेते थे। उन्हें नए-नए चुटकुले बनाकर सुनाने का बेहद शौक था। अमिताभ को वे अक्सर फोन कर लतीफे सुनाया करते थे।

निधन

एक कार दुर्घटना में अमजद बुरी तरह घायल हो गए। एक फ़िल्म की शूटिंग के सिलसिले में लोकेशन पर जा रहे थे। ऐसे समय में अमिताभ बच्चन ने उनकी बहुत मदद की। अमजद ख़ान तेजी से ठीक होने लगे। लेकिन डॉक्टरों की बताई दवा के सेवन से उनका वजन और मोटापा इतनी तेजी से बढ़ा कि वे चलने-फिरने और अभिनय करने में कठिनाई महसूस करने लगे। वैसे अमजद मोटापे की वजह खुद को मानते थे। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि- "फ़िल्म ‘शोले’ की रिलीज के पहले उन्होंने अल्लाह से कहा था कि यदि फ़िल्म सु‍परहिट होती है तो वे फ़िल्मों में काम करना छोड़ देंगे।" फ़िल्म सुपरहिट हुई, लेकिन अमजद ने अपना वादा नहीं निभाते हुए काम करना जारी रखा। ऊपर वाले ने मोटापे के रूप में उन्हें सजा दे दी। इसके अलावा वे चाय के भी शौकीन थे। एक घंटे में दस कप तक वे पी जाते थे। इससे भी वे बीमारियों का शिकार बने। मोटापे के कारण उनके हाथ से कई फ़िल्में फिसलती गई। 27 जुलाई, 1992 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और दहाड़ता गब्बर हमेशा के लिए सो गया। अमजद ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की इमेज के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है।

डिम्पल कपाड़िया और राखी अभिनीत फ़िल्म 'रुदाली' अमजद ख़ान की आखिरी फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में उन्होंने एक मरने की हालात में पहुंचे एक ठाकुर की भूमिका निभाई थी, जिसकी जान निकलते-निकलते नहीं निकलती। ठाकुर यह जानता है कि उसकी मौत पर उसके परिवार के लोग नहीं रोएंगे। इसलिए वह मातम मनाने और रोने के लिए रुपये लेकर रोने वाली रुदाली को बुलाता है।

गब्बर सिंह (चरित्र)

गब्बर सिंह भारतीय फ़िल्मों का डाकू का चरित्र था जिसे पहली बार शोले फ़िल्म में अमज़द खान के रूप में देखा था। शोले 1975 की एक फ़िल्म थी जिसे सलीम खान तथा जावेद अख्तर ने लिखी थी। इसके पश्चात रामगढ़ के शोले में भी इनका चरित्र देखना को मिला।


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